Indian Banks’ Association: बैंक में पैसा जमा नहीं करा रहे लोग, कौन है जिम्मेदार ? म्यूचुअल फंड कंपनियों ने नियमों को दोषी ठहराया
Indian Banks’ Association
Indian Banks’ Association ने कहा कि आसान नियमों के कारण रिटेल डिपॉजिट बैंकों से म्यूचुअल फंड योजनाओं में जा रही है, जबकि बैंकों में घटते डिपॉजिट लेवल की चिंता जारी है। यहां आयोजित सालाना फिबैक सम्मेलन में आईबीए के चेयरमैन एम वी राव ने कहा कि म्यूचुअल फंड कंपनियों के लिए आसान हो गया है कि वे निवेशकों को अधिक रिटर्न दें। कोटक म्यूचुअल फंड के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) नीलेश शाह, हालांकि, बैंकों की धीमी डिपॉजिट ग्रोथ को म्यूचुअल फंड कंपनियों पर डालने के इस दावे से सहमत नहीं हैं।
दरअसल, बैंकिंग प्रणाली में पिछले एक साल से अधिक समय से डिपॉजिट ग्रोथ कम हुआ है। ऐसे में इसकी लोन डिमांड को बनाए रखने की क्षमता पर चिंता है। उद्योग और आरबीआई गवर्नर शक्तिकान्त दास का मानना है कि बचतकर्ता हाई रिटर्न वाले म्यूचुअल फंड में पैसा लगाना पसंद करते हैं. म्यूचुअल फंड योजनाओं का प्रबंधन करने वाली कंपनियों के मंथली इनफ्लो में भी वृद्धि हुई है।
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आसान नियम म्यूचुअल फंड कंपनियों के लिए लाभदायक
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के प्रमुख राव ने कहा कि एमएफ कंपनियों पर ऐसे प्रतिबंध नहीं हैं, लेकिन बैंकों के लिए कोष का निवेश विनियमों से निर्धारित है। उन्होंने कहा कि बैंक ग्राहकों को अपना धन उनके पास रखने का “निर्देश” नहीं दे सकते हैं और एमएफ कंपनियों को अंतिम उपयोग सत्यापन का सामना नहीं करना पड़ता है। राव ने यह भी कहा कि 99 प्रतिशत म्यूचुल फंड निवेशक अपने दांव लगाने के लिए एक समूह की तरह काम करते हैं, जो जोखिम भरे परिणामों को जन्म दे सकता है।
अमेरिका से ज्ञान की आवश्यकता
विपरीत, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य शाह ने मुद्रा वितरण को बैंकों के विशेष अधिकार में रखने, छोटी बचत योजनाओं की उपस्थिति और धीमी जमा वृद्धि के लिए सरकारी शेष राशि को बैंकिंग प्रणाली से बाहर ले जाने की ओर इशारा किया। शाह ने यह भी स्पष्ट किया कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में जमा वृद्धि सुस्त होने के ऐसे आरोप गलत नहीं हैं, इसलिए उन्होंने अमेरिका सहित अन्य बाजारों के अनुभव भी साझा किए।
शाह ने कहा कि उन्होंने मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि सरकारी शेष राशि बैंकों में जमा हो, जिससे सरकार को प्रति वर्ष 12,000 करोड़ रुपये तक का ब्याज मिलेगा।